Posts

Showing posts from June, 2014

देवताओं के नाम के आगे लार्ड शब्द

देवताओं के नाम के आगे लार्ड शब्द (Lord Word) का प्रयोग बंद करो क्या आपने कभी कभी सोचा है की लार्ड (अँग्रेज़ी शब्द) और भगवान (हिन्दी शब्द) में क्या अंतर है ? कभी सोचा है आखिर अग्रेजों ने हिन्दू धर्म के देवताओं के नाम के आगे भगवान के बाजय लार्ड अँग्रेज़ी शब्द को प्रयोग क्यों किया ? हिन्दी शब्द भगवान का अर्थ: भ - भूमि, ग- गगन, व- वायु, आ- अग्नि, न-नीर मैकाले की संस्कार विहीन शिक्षापद्दती देश के विकास में बाधक है | शिक्षा व्यवस्था में संस्कारों का अभाव तथा इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने के कारण ही देश का युवा अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान से विमुख होकर पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण को विवश है | अंग्रेज़ चले गये पर उनके मानसपुत्रों की कमी नहीं है | भारत में, भारतीय संसद के सभी सदस्यों के लिए, चाहे वे लोक सभा के सदस्य हों या राज्यसभा के, सांसद शब्द का प्रयोग किया जाता है | यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन), हाउस ऑफ़ लार्ड्स के सदस्य 'लार्ड्स ऑफ़ पार्लियामेंट' कहे जाते हैं | इंग्लैंड सरकार की ओर से लॉर्ड एक उपाधि है | लॉर्ड की उपाधि प्राप्त भारत के वाइसरॉय एवं गवर्नर जनरल: • लॉर्ड वि

इराक में आज जो हो रहा है, उससे भी कहीं बर्बर हमलों को हमारे देश ने झेला है |

1) मीर कासिम ने सिंध में रात को धोखे से घुस कर एक रात में 50000 से ज्यादा हिन्दुओं का कत्ले आम कर सिंध पर कब्ज़ा किया | 2) सोमनाथ मंदिर के अन्दर मौजूद 32500 ब्राह्मणों के खून से मुहम्मद गजनवी ने परिसर को नहला दिया था | 3) सोमनाथ में लगी भगवान् की मूर्तियों को मुहम्मद गजनवी ने अपने दरबार और शोचालय के सीढियों में लगवा दिया था ताकि वो रोज उनके पैर नीचे आती रहे | 4) औरंगजेब के इस्लाम कबूल करवाने के खुले आदेश के बाद सबसे ज्यादा तबाही आई | कुछ को जबरदस्ती से मुस्लिम बनवाया गया जो आज त्यागी, राठोड, चौधरी, जट, राजावत, भाटी, मोह्यल नाम लगाकर घूम रहे है | 6) औरंगजेब ने ब्राह्मणों द्वारा इस्लाम कबूल ना करने पर उन्हें गर्म पानी में उबाल कर जिन्दा चमड़ी उतरवाने का फरमान जारी किया | ब्राह्मणों की शिखाएं और जनेउ जलाकर औरंगजेब ने अपने नहाने का पानी गर्म किया | 7) मुहम्मद जलालुदीन ने हर हिन्दू राज्य जीतने पर वहां की लडकियों को उठवा दिया जो मीना बाजार और हरम में पंहुचा दी जाती थीं | 8) अजयमेरु का सोमेश्वर नाथ शिव मंदिर तोड़कर अजमेर दरगाह खड़ी की गयी साथ ही वैष्णव मंदिर तोड़ ढाई दिन का झोपड़ा तय

धर्म-परिवर्तनके दुष्परिणाम

१. सामाजिक दुष्परिणाम १ अ. कंधमलमें (उडीसामें) वनवासी जनजातियोंके धर्म-परिवर्तनका दुष्परिणाम          ‘धर्मांतरितोंके रहन-सहनमें विलक्षण परिवर्तन दिखाई देनेके कारण कंधमलमें ईसाई  बनी जनजातियां और वहांके परंपरागत समाजमें दूरियां बढ गई हैं ।’ - दैनिक ‘राष्ट्रीय सहारा’ (६.७.२००९) १ आ. बहुसंख्यक बने ईसाइयोंकी धर्मांधताका सामाजिक जीवनपर दुष्परिणाम होना           नागभूमिमें (नागालैंडमें) ईसाइयोंके धार्मिक दिवस रविवारके दिन अन्य कार्यक्रम प्रतिबंधित हैं । उस दिन बसें भी बंद रहती हैं । कृषक अपने खेतोंमें रविवारको काम नहीं कर सकते । यदि वे करें, तो उन्हें ५ सहस्र रुपए दंड भरना पडता है एवं २५ कोडे खाने पडते हैं । १ इ. ईसाई बहुसंख्यक मेघालयमें केंद्रशासनके नियमोंमें ईसाई धर्मका संदर्भ जोडा जाना          ‘मेघालय राज्यमें केंद्रशासनके नियमानुसार रविवारको छुट्टी रहती है । किंतु , इस विषयमें मेघालय शासनके ग्रामीण विकास विभागकी अप्पर सचिव श्रीमती एम्. मणीने एक लिखित उत्तरमें कहा, ‘हमारा राज्य ईसाई होनेके कारण रविवारको यहां सबकी छुट्टी रहती है ।’ मंगरूलनाथके मानवाधिकार कार्यकर्ता और सेवान

भारतीय इतिहास के साथ खिलवाड़

भारतीय इतिहास के साथ इस खिलवाड़ के मुख्य दोषी वे ''वामपंथी इतिहासकार'' हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद नेहरू की सहमति से प्राचीन हिन्दू गौरव को उजागर करने वाले इतिहास को या तो काला कर दिया या धुँधला कर दिया और इस गौरव को कम करने वाले इतिहास-खंडों को प्रमुखता से प्रचारित किया, जो उनकी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के खाँचे में फिट बैठते थे |  यहाँ वामपंथी इहिसकार केवल दलित पिछडे नही अपितु काशी पीठ के आचार्य, ''शंकराचार्य'', ''धर्म गुरु'' तक शामिल थे | अयाश नेहरू इनको बड़ा हिस्सा देता था . . . . .. कुछ अन्य तथाकथित इतिहासकार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की उपज थे, जिन्होंने नूरुल हसन और इरफान हबीब की अगुआई में इस प्रकार इतिहास को विकृत किया | भारतीय इतिहास कांग्रेस पर लम्बे समय तक इनका कब्जा रहा, जिसके कारण इनके द्वारा लिखा या गढ़ा गया अधूरा और भ्रामक इतिहास ही आधिकारिक तौर पर भारत की नयी पीढ़ी को पढ़ाया जाता रहा, वे देश के नौनिहालों को यह झूठा ज्ञान दिलाने में सफल रहे कि भारत का सारा इतिहास केवल पराजयों और गुलामी का इतिहास है और यह कि भारत का

क्यों ढका जाता है सिर, पूजा करते समय ?

पौराणिक कथाओं में नायक, उपनायक तथा खलनायक भी सिर को ढंकने के लिए मुकुट पहनते थे | यही कारण है कि हमारी परंपरा में सिर को ढकना स्त्री और पुरुषों सबके लिए आवश्यक किया गया था | सभी धर्मों की स्त्रियां दुपट्टा या साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढंककर रखती थी। इसीलिए मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल पर जाते समय या पूजा करते समय सिर ढकना जरूरी माना गया था | पहले सभी लोगों के सिर ढकने का वैज्ञानिक कारण था | दरअसल विज्ञान के अनुसार सिर मनुष्य के अंगों में सबसे संवेदनशील स्थान होता है | ब्रह्मरंध्र सिर के बीचों-बीच स्थित होता है | मौसम के मामूली से परिवर्तन के दुष्प्रभाव ब्रह्मरंध्र के भाग से शरीर के अन्य अंगों पर आतें हैं | आपको बता दें कि हमारी परंपरा में सिर को ढकना स्त्री और पुरुषों सबके लिए आवश्यक किया गया था। सभी धर्मों की स्त्रियां दुपट्टा या साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढंककर रखती थी। इसीलिए मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल पर जाते समय या पूजा करते समय सिर ढकना जरूरी माना गया था | लेकिन सिर ढकने का एक वैज्ञानिक कारण भी है| दरअसल सिर मनुष्य के अंगों में सबसे संवेदनशील भाग होता है |

कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के पिताश्री: महर्षि पाणिनि

महर्षि पाणिनि के बारे में बताने पूर्व में आज की कंप्यूटर प्रोग्रामिंग किस प्रकार कार्य करती है इसके बारे में कुछ बताना चाहूँगा आज की कंप्यूटर प्रोग्रामिंग भाषाएँ जैसे C, C++, Java आदि में प्रोग्रामिंग हाई लेवल लैंग्वेज (high level language) में लिखे जाते है जो अंग्रेजी के सामान ही होती है | इसे कंप्यूटर की गणना सम्बन्धी व्याख्या (theory of computation) जिसमे प्रोग्रामिंग के syntex आदि का वर्णन होता है, के द्वारा लो लेवल लैंग्वेज (low level language) जो विशेष प्रकार का कोड होता है जिसे mnemonic कहा जाता है जैसे जोड़ के लिए ADD, गुना के लिए MUL आदि में परिवर्तित किये जाते है | तथा इस प्रकार प्राप्त कोड को प्रोसेसर द्वारा द्विआधारी भाषा (binary language: 0101) में परिवर्तित कर क्रियान्वित किया जाता है | इस प्रकार पूरा कंप्यूटर जगत Theory of Computation पर निर्भर करता है | इसी Computation पर महर्षि पाणिनि (लगभग 500 ई पू) ने एक पूरा ग्रन्थ लिखा था महर्षि पाणिनि संस्कृत भाषा के सबसे बड़े व्याकरण विज्ञानी थे | इनका जन्म उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। कई इतिहासकार इन्हें

संस्कृत(sanskrit) Language

देवभाषा संस्कृत की गूंज कुछ साल बाद अंतरिक्ष में सुनाई देगी । इसके वैज्ञानिक पहलू जानकर अमेरिका नासा की भाषा बनाने की कसरत में जुटा हुआ है । इस प्रोजेक्ट पर भारतीय संस्कृत विद्वानों के इन्कार के बाद अमेरिका अपनी नई पीढ़ी को इस भाषा में पारंगत करने में जुट गया है। गत दिनों आगरा दौरे पर आए अरविंद फाउंडेशन [इंडियन कल्चर] पांडिचेरी के निदेशक संपदानंद मिश्रा ने 'जागरण' से बातचीत में यह रहस्योद्घाटन किया कि नासा के वैज्ञानिक रिक ब्रिग्स ने 1985 में भारत से संस्कृत के एक हजार प्रकांड विद्वानों को बुलाया था। उन्हें नासा में नौकरी का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने बताया कि संस्कृत ऐसी प्राकृतिक भाषा है, जिसमें सूत्र के रूप में कंप्यूटर के जरिए कोई भी संदेश कम से कम शब्दों में भेजा जा सकता है। विदेशी उपयोग में अपनी भाषा की मदद देने से उन विद्वानों ने इन्कार कर दिया था। इसके बाद कई अन्य वैज्ञानिक पहलू समझते हुए अमेरिका ने वहां नर्सरी क्लास से ही बच्चों को संस्कृत की शिक्षा शुरू कर दी है। नासा के 'मिशन संस्कृत' की पुष्टि उसकी वेबसाइट भी करती है। उसमें स्पष्ट लिखा है

सनातनी ग्रंथों में प्राणी विज्ञान - Zoology in Ancient Indian Scriptures

भारतीय परम्परा के अनुसार सृष्टि में जीवन का विकास क्रमिक रूप से हुआ है। इसकी अभिव्यक्ति अनेक ग्रंथों में हुई है। श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णन आता है- सृष्ट्वा पुराणि विविधान्यजयात्मशक्तया वृक्षान्‌ सरीसृपपशून्‌ खगदंशमत्स्यान्‌। तैस्तैर अतुष्टहृदय: पुरुषं विधाय व्रह्मावलोकधिषणं मुदमाप देव:॥ (११-९-२८ श्रीमद्भागवतपुराण) विश्व की मूलभूत शक्ति सृष्टि के रूप में अभिव्यक्त हुई। इस क्रम में वृक्ष, सरीसृप, पशु, पक्षी, कीड़े, मकोड़े, मत्स्य आदि अनेक रूपों में सृजन हुआ। परन्तु उससे उस चेतना को पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं हुई, अत: मनुष्य का निर्माण हुआ जो उस मूल तत्व का साक्षात्कार कर सकता था। दूसरी बात, भारतीय परम्परा में जीवन के प्रारंभ से मानव तक की यात्रा में ८४ लाख योनियों के बारे में कहा गया। आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि अमीबा से लेकर मानव तक की यात्रा में चेतना १ करोड़ ४४ लाख योनियों से गुजरी है। आज से हजारों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने यह साक्षात्कार किया, यह आश्चर्यजनक है। अनेक आचार्यों ने इन ८४ लाख योनियों का वर्गीकरण किया है। समस्त प्राणियों को दो भागों में बांटा गया है, योनिज तथा

मार्शल आर्ट के जनक एक भारतीय हैं

मार्शल आर्ट में सबसे अच्छी विद्या मानी जाती है कुंग्फु और इसको सिखाने का सबसे अच्छा विद्यालय माना जाता है चीन में स्थित सओलिन मन्दिर | आपको यह जानकार बेहद आश्चर्य होगा की इस विद्यालय की आधारशिला रखने वाले और चीन को इस कला का ज्ञान देने वाले भारतीय थे | उस भारतीय का नाम था - " बोधिधर्मन " |   बोधिधर्मन आत्मरक्षा कला के अलावा एक महान चिकित्सक भी थे | उन्होंने अपने ग्रन्थ में डीएनए के माध्यम से बीमारियों को ठीक करने की विधि के बारे में भी आज से १६०० साल पहले बता दिया था | आज हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को पूर्ण रूप से भूल चुके हैं | जिस संस्कृति को हम लोग भूल रहे हैं और जिन मूल्यों को हम को चुके हैं उनको अपनाकर अनेकों देश आज विकसित अवस्था में हैं और हम क्या हैं आप समझ रहे होंगे | आज जिस मार्शल आर्ट की कला को हम सीखने के लिए लालायित रहते हैं उसके बारे में हम यही सोचते हैं की यह तो चीन की देन है .. जबकि हकीक़त इसके उल्टे है | इस कला का ज्ञान चीन ने नहीं बल्कि चीन के साथ पूरे विश्व को हमने दिया था | लेकिन विडम्बना यह है की इस विद्या के जन्मदाता का नाम ही हमने आज तक नहीं सुना | यह सब