काशी विश्वनाथ मंदिर
मूल काशी विश्वनाथ मंदिर बहुत छोटा था। 18वीं शताब्दी में इंदौरा की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इसे भव्य रूप प्रदान किया। सिख राजा रंजीत सिंह ने 1835 ई. में इस मंदिर के शिखर को सोने से मढ़वाया था। इस कारण इस मंदिर का एक अन्य नाम गोल्डेन टेम्पल भी पड़ा।
यह मंदिर कई बार ध्वस्त हुआ। वर्तमान में जो मंदिर है उसका निर्माण चौथी बार में हुआ है। कुतुबुद्दीन ऐबक ने सर्वप्रथम इसे 1194 ई. में ध्वस्त किया था। रजिया सुल्तान (1236-1240) ने इसके ध्वंसावशेष पर रजिया मस्जिद का निर्माण करवाया था। इसके बाद इस मंदिर का निर्माण अभिमुक्तेश्वर मंदिर के नजदीक बनवाया गया। बाद में इस मंदिर को जौनपुर के शर्की राजाओं ने तोड़वा दिया। 1490 ई. में इस मंदिर को सिंकदर लोदी ने ध्वंस करवाया था। 1585 ई. में बनारस के एक प्रसिद्ध व्यापारी टोडरमल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। 1669 ई. में इस मंदिर को औरंगजेब ने पुन: तोड़वा दिया। औरंगजेब ने भी इस मंदिर के ध्वंसावशेष पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया था।
मूल मंदिर में स्थित नंदी बैल की मूर्त्ति का एक टुकड़ा अभी भी जाना वापी मस्जिद में दिखता है। इसी मस्जिद के समीप एक जाना वापी कुंआ भी है। विश्वास किया जाता है कि प्राचीन काल में इसे कुएं से अभिमुक्तेश्वर मंदिर में पानी की आपूर्ति होती थी। 1669 ई. में जब काशी विश्वनाथ के मंदिर को औरंगजेब द्वारा तोड़ा जा रहा था तब इस मंदिर में स्थापित विश्वनाथ की मूर्त्ति को इसी कुएं में छिपा दिया गया था। जब वर्तमान काशी विश्वनाथ का निर्माण हुआ तब इस कुंए से मूर्त्ति को निकाल कर पुन: मंदिर में स्थापित किया गया। इस मंदिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं। ये मंदिर विष्णु, अभिमुक्ता विनायक, दण्डपाणिश्वर, काल भैरव तथा विरुपक्ष गौरी का मंदिर है।
इस मंदिर से संबद्ध अन्य सांस्कृतिक उत्सव: फागुन (फरवरी-मार्च) में शिवरात्रि के उत्सव के दौरान यहां जरुर आना चाहिए। इस दौरान मंदिर के देवता का श्रृंगार किया जाता है। रंगभरी एकादशी भी यहां बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दौरान शिवभक्त भगवान शिव की मूर्त्ति को लाल रंग के चूर्ण से रंग देते है। पंचकरोशी यात्रा प्रत्येक साल अप्रैल के महीने में होती है। दुर्गा पूजा (सितम्बर-अक्टूबर) के दौरान मनाया जाता है। भरत मिलाप उत्सव विजयादशमी को मनाया जाता है। इस दिन संस्कृत विश्वविद्यालय के समीप मेला लगता है। दीपावली के समय का यहां का गंगा स्नान भी काफी प्रसिद्ध है। दीपावली के अगले दिन यहां अन्नाकूता उत्सव मनाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दौरान यहां सभी घाटों को मृत्यु के देवता यमराज के सम्मान में दीयों से सजाया जाता है।
Comments