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भारतीयों का भाषा बदल दो तो उनकी देश संस्कृति और धर्म खुद ब खुद बदल जायेगी

711 ईस्वी में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर कब्जा कर लिया था। 200 साल अंग्रेजों के शासन सहित भारतीय लोग करीब पूर्ण रूप से 700 से ज्यादा वर्ष तक विदेशी गुलामी में जीते रहे। कुल गुलामी का काल 1236 वर्ष रहा, जिसमें आजादी के बाद के 64 वर्ष भी जोड़ दिए जाए तो कुल 1300 साल से हम गुलाम है। हम पर यूनानी, मंगोल, ईरानी, इराकी, पुर्तगाली, फ्रांसीसी, मुगल और अंग्रेज ने राज किया है। उनके शासन तले हम हिंदू से पहले मुसलमान बने, ईसाई बने, फिर कम्युनिस्ट बने और पिछले 64 साल की तथाकथित आजादी के चलते अब हम न जाने क्या-क्या बनते जा रहे हैं। पुरे मुल्क को 'अपनों के खिलाफ अपनों का मुल्क' बना दिया गया। आखिर क्यों और कैसे ? 327 ईपू सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया और सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र के राजाओं को उसकी अधीनता स्वीकारना पड़ी, लेकिन मगध की विशाल सेना के सामने उसकी सेना ने युद्ध से इनकार कर दिया था और उसे भारत भूमि छोड़कर बेबीलोन जाना पड़ा। इसके बाद मोहम्मद-बिन-कासिम के आक्रमण ने भारतीयों को झकझोर दिया। इससे पहले इस्लामिक सेनाएं खलीफा उमर के नेतृत्व में सन 644 में सिंध पहुंची और

भारतीयों का भाषा बदल दो तो उनकी देश संस्कृति और धर्म खुद ब खुद बदल जायेगी

711 ईस्वी में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर कब्जा कर लिया था। 200 साल अंग्रेजों के शासन सहित भारतीय लोग करीब पूर्ण रूप से 700 से ज्यादा वर्ष तक विदेशी गुलामी में जीते रहे। कुल गुलामी का काल 1236 वर्ष रहा, जिसमें आजादी के बाद के 64 वर्ष भी जोड़ दिए जाए तो कुल 1300 साल से हम गुलाम है। हम पर यूनानी, मंगोल, ईरानी, इराकी, पुर्तगाली, फ्रांसीसी, मुगल और अंग्रेज ने राज किया है। उनके शासन तले हम हिंदू से पहले मुसलमान बने, ईसाई बने, फिर कम्युनिस्ट बने और पिछले 64 साल की तथाकथित आजादी के चलते अब हम न जाने क्या-क्या बनते जा रहे हैं। पुरे मुल्क को 'अपनों के खिलाफ अपनों का मुल्क' बना दिया गया। आखिर क्यों और कैसे ?327 ईपू सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया और सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र के राजाओं को उसकी अधीनता स्वीकारना पड़ी, लेकिन मगध की विशाल सेना के सामने उसकी सेना ने युद्ध से इनकार कर दिया था और उसे भारत भूमि छोड़कर बेबीलोन जाना पड़ा। इसके बाद मोहम्मद-बिन-कासिम के आक्रमण ने भारतीयों को झकझोर दिया। इससे पहले इस्लामिक सेनाएं खलीफा उमर के नेतृत्व में सन 644 में सिंध पहुंची और उ

19 मई को अमर शहीद नाथूराम गोडसे की जन्म तिथि

हुतात्मा नाथूराम गोडसे और कथित महात्मा गांधी (विश्वासघाती दुरात्मा शब्द भी कम हैं शायद ) कुछ अनकहे कटुतथ्य- 1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया | 2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है| 3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी | 4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसम

!!!-: वेद-परिचय :---!!!

सामवेदः--- --------------- चारों वेदों में सामवेद का महत्त्व सर्वाधिक है। यजुर्वेद ने सामवेद को "प्राणतत्त्व" कहा हैः--साम प्राणं प्रपद्ये" (यजुः 36.1) "प्राणो वै साम" (श.प.ब्रा. 14.8.14.3) "स यः प्राणस्तत् साम" (जैमिनीयोपनिषद् ब्राह्मण--4.23.3)  सामवेद सूर्य का प्रतिनिधि है, अतः उसमें सौर-ऊर्जा है। जैसे सूर्य सर्वत्र समभाव से विद्यमान है, वैसे सामवेद भी समत्व के कारण सर्वत्र उपलब्ध है। सम का ही भावार्थक साम हैः---"तद्यद् एष (आदित्यः) सर्वैर्लोकैः समः तस्मादेषः (आदित्यः) एव साम।" (जै.उप.ब्रा.-1.12.5) सामवेद सूर्य है और सामवेद के मन्त्र सूर्य की किरणें हैं, अर्थात् सामवेद से सौर-ऊर्जा मनुष्य को प्राप्त होती हैः---"(आदित्यस्य) अर्चिः सामानि" (श.प.ब्रा. 10.5.1.5)  सामवेद में साम (गीति) द्युलोक है और ऋक् पृथिवी हैः--"साम वा असौ (द्युः) लोकः ऋगयम् (भूलोकः)" (ताण्ड्य ब्रा.4.3.5) सभी वेदों का सार सामवेद ही हैः--"सर्वेषां वा एष वेदानां रसो यत् साम" (श.प.ब्रा. 12.8.3.23 और गो.ब्रा. 2.5.7) साम के बिना यज्ञ अपूर्ण हैः--

अकबर महान था क्या ?

हमारे पाठकों को अपने विद्यालय के दिनों में पढ़े इतिहास में अकबर का नाम और काम बखूबी याद होगा. रियासतों के रूप में टुकड़ों टुकड़ों में टूटे हुए भारत को एक बनाने की बात हो, या हिन्दू मुस्लिम झगडे मिटाने को दीन ए इलाही चलाने की बात, सब मजहब की दीवारें तोड़कर हिन्दू लड़कियों को अपने साथ शादी करने का सम्मान देने की बात हो, या हिन्दुओं के पवित्र स्थानों पर जाकर सजदा करने की, हिन्दुओं पर से जजिया कर हटाने की बात हो या फिर हिन्दुओं को अपने दरबार में जगह देने की, अकबर ही अकबर सब ओर दिखाई देता है. सच है कि हमारे इतिहासकार किसी को महान यूँ ही नहीं कह देते. इस महानता को पाने के लिए राम, कृष्ण, विक्रमादित्य, पृथ्वीराज, राणा प्रताप, शिवाजी और न जाने ऐसे कितने ही महापुरुषों के नाम तरसते रहे, पर इनके साथ “महान” शब्द न लग सका. हमें याद है कि इतिहास की किताबों में अकबर पर पूरे अध्याय के अन्दर दो पंक्तियाँ महाराणा प्रताप पर भी होती थीं. मसलन वो कब पैदा हुए, कब मरे, कैसे विद्रोह किया, और कैसे उनके ही राजपूत उनके खिलाफ थे. इतिहासकार महाराणा प्रताप को कभी महान न कह सके. ठीक ही तो है! अकबर और राणा का मुकाबल

Islamization_of_World

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1) जानिये ईसाई देश इजिप्त कैसे बना इस्लामी देश The Islamization of Egypt occurred as a result of the  Islamic conquest of Egypt  by the  Arabs  led by  Amr ibn al-Aas  the military governor of Palestine . The indigenous  Coptic  population of  Egypt  underwent a large scale gradual conversion from Coptic  Christianity  to  Islam . This process of  Islamization  was accompanied by a simultaneous wave of  Arabization . These factors resulted in Muslims becoming a majority in Egypt by the mid-10th century, the Egyptians acculturation into  Arab  identity and the replacement of their native  Coptic  and Greek  languages with  Arabic  as their sole vernacular. The Hanging Church in Old Cairo Islamic links to Coptic Egypt predates Arab conquests. Prophet  Mohammed  received a Coptic slave  Maria al-Qibtiyya  as a gift from the Byzantine official  Muqawqis . In 641 AD, Egypt was invaded by the  Arabs  who faced off with the  Byzantine  army, but found little to no resistanc