वैदिक व वैज्ञानिक दृष्टि से मौली या कलावा बांधने का क्या अर्थ है ?
हिंदू धर्म में कई रीति-रिवाज तथा मान्यताएं हैं | इन रीति-रिवाजों तथा मान्यताओं का सिर्फ धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक पक्ष भी है, जो वर्तमान समय में भी एकदम सटीक बैठता है | हिंदू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कर्म यानि पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन आदि के पूर्व ब्राह्मण द्वारा यजमान के दाएं हाथ में कलावा/मौली (एक विशेष धार्मिक धागा) बांधी जाती है | किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करते समय या नई वस्तु खरीदने पर हम उसे कलावा/मौली बांधते है ताकि वह हमारे जीवन में शुभता प्रदान करे | कलावा/मौली कच्चे सूत के धागे से बनाई जाती है। यह लाल रंग, पीले रंग, या दो रंगों या पांच रंगों की होती है | इसे हाथ गले और कमर में बांधा जाता है | शंकर भगवान के सिर पर चंद्रमा विराजमान है इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है | कलावा/मौली बांधने की प्रथा तब से चली आ रही है जब दानवीर राजा बली की अमरता के लिए वामन भगवान ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था | शास्त्रों में भी इसका इस श्लोक के माध्यम से मिलता है - येन बद्धो बलीराजा दानवेन्द्रो महाबल:| तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे माचल माचल|| शास्त्रों का ऐसा मत है कि कलावा/