Posts

बिना औषध के रोगनिवारण

                              बिना औषध के रोगनिवारण अनियमित क्रिया के कारण जिस तरह मानव-देह में रोग उत्पन्न होते हैं, उसी तरह औषध के बिना ही भीतरी क्रियाओं के द्वारा नीरोग होने के उपाय भगवान् के बनाए हुए हैं। हम लोग उस भागवत्प्रदत्त सहज कौशल को नहीं जानते इसी कारण दीर्घ काल तक रोगजनित दुःख भोगते हैं। यहाँ रोगों के निदान के लिये स्वरोदयशास्त्रोक्त कुछ यौगिक उपायों का उल्लेख किया जा रहा है जिनके प्रयोग से विशेष लाभ हो सकता है- ज्वर (बुखार) - ज्वर का आक्रमण होने पर अथवा आक्रमण की आशंका होने पर जिस नासिका से श्वास चलता हो, उस नासिका को बंद कर देना चाहिये। जब तक ज्वर न उतरे और शरीर स्वस्थ न हो जाय, तब तक उस नासिका को बंद ही रखना चाहिए। ऐसा करने से दस-पंद्रह दिनों में उतरने वाला ज्वर पांच-सात दिनों में अवश्य ही उतर जाएगा। ज्वरकाल में मन-ही-मन सदा चांदी के सामान श्वेत वर्ण का ध्यान करने से अति शीघ्र लाभ होता है। सिंदुवार की जड़ रोगी के हाथ में बाँध देने से सब प्रकार के ज्वर निश्चय ही दूर हो जाते हैं। अँतरिया ज्वर - श्वेत अपराजिता अथवा पलाश के कुछ पत्तों को हाथ से मलकर कप

सम्राट विक्रमादित्य का साम्राज्य अरब तक था.

                 सम्राट विक्रमादित्य का साम्राज्य अरब तक था. शकों को भारत से खदेड़ने के बाद सम्राट विक्रमादित्य ने पुरे भारतवर्ष में ही नही , बल्कि लगभग पूरे विश्व को जीत कर हिंदू संस्कृति का प्रचार पूरे विश्व में किया। सम्राट के साम्राज्य में कभी सूर्य अस्त नही होता था। सम्राट विक्रमादित्य ने अरबों पर शासन किया था, इसका प्रमाण स्वं अरबी काव्य में है । "सैरुअल ओकुल" नमक एक अरबी काव्य , जिसके लेखक "जिरहम विन्तोई" नमक एक अरबी कवि है। उन्होंने लिखा है,------- "वे अत्यन्त भाग्यशाली लोग है, जो सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में जन्मे। अपनी प्रजा के कल्याण में रत वह एक कर्ताव्यनिष्ट , दयालु, एवं सचरित्र राजा था।" "किंतु उस समय खुदा को भूले हुए हम अरब इंद्रिय विषय -वासनाओं में डूबे हुए थे । हम लोगो में षड़यंत्र और अत्याचार प्रचलित था। हमारे देश को अज्ञान के अन्धकार ने ग्रसित कर रखा था। सारा देश ऐसे घोर अंधकार से आच्छादित था जैसा की अमावस्या की रात्रि को होता है। किंतु शिक्षा का वर्तमान उषाकाल एवं सुखद सूर्य प्रकाश उस सचरित्र सम्राट विक्रम की कृपालुता का

भारत का स्वर्णिम अतीत

"सारी दुनिया में जो कुल उत्पादन होता है उसका 43% उत्पादन अकेले भारत में होता है और दुनिया के बाकी 200 देशों में मिलाकर 57% उत्पादन होता है।" इसके बाद अँग्रेजी संसद में एक और आंकड़ा प्रस्तुत किया गया की: "सारी दुनिया के व्यापार में भारत का हिस्सा लगभग 33% है।" इसी तरह से एक और आंकड़ा भारत के बारे में अँग्रेजी संसद में दिया गया की: "सारी दुनिया की जो कुल आमदनी है, उस आमदनी का लगभग 27% हिस्सा अकेले भारत का है।" ये आंकड़ा अंग्रेजों द्वारा उनकी संसद में 1835 में और 1840 में भी दिया गया। आज से लगभग 100-150 साल से शुरू करके पिछले हज़ार साल का इतिहास के कुछ तथ्य। भारत के इतिहास/ अतीत पर दुनिया भर के 200 से ज्यादा विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों ने बहुत शोध किया है। इनमें से कुछ विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों की बात आपके सामने रखूँगा। ये सारे विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञ भारत से बाहर के हैं,कुछ अंग्रेज़ हैं,कुछ स्कॉटिश हैं,कुछ अमेरिकन हैं,कुछ फ्रेंच हैं,कुछ जर्मन हैं। ऐसे दुनिया के अलग अलग देशों के विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों ने भारत के बारे में जो कुछ

आयुर्वेद के अनुसार बच्चे के जन्म का आधार

हमारे पुराने आयुर्वेद ग्रंथों में पुत्र-पुत्री प्राप्ति हेतु दिन-रात, शुक्ल पक्ष-कृष्ण पक्ष तथा माहवारी के दिन से सोलहवें दिन तक का महत्व बताया गया है। धर्म ग्रंथों में भी इस बारे में जानकारी मिलती है। हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं। * चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है। * पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी। * छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा। * सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी। * आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है। * नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है। * दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है। * ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है। * बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है। * तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है। * चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है। * पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पु

मातृ भाषा ' शिक्षा ' और विकास

मातृ भाषा ' शिक्षा ' और विकास किसी भी देश का विकासशील होना उसकी शिक्षा पर निर्भर करता है इस बात पर आज हर कोई सहमत हो सकता है परन्तु मेरी दृष्टि से । क्या केवल यही एक मात्र विकाश पथ के लिए जिम्मेवार है ? यदि मै कहु की नही तब आप को भले ही संकोच हो सकता है परन्तु कुछ हद तक ये सच्चाई अवस्य है जो मै आप सभी के सामने रख रहा हु । मातृ भाषा इस विकाशील में सबसे अहम् भूमिका निभाती है । और भारत आज अपने मातृभाषा से दूर हो चला है कुछ कुछ ऐसे भी प्रांत है जहाँ भारत की मातृभाषा लुप्त प्राय: हो चुकी है । अब चलिए पोस्ट के विषय के अहम् विषय पर चीन :- चीन आज विकास शील देश के लगभग हर हिस्से में अपना बर्चस्व स्थापित किया है । ऐसा भला क्यों आज भारत भी तो इनकी जन संख्या के लगभग है फिर ऐसा क्यों ? क्यों की चीन आज भी चीन अपने मातृ भाषा को नही गवायाँ आज चीन पर कोई भी बेदेशी भाषा हावी नही है जिस कारण हर बिषय सभी तक पहुचने में शक्षम होता है । वही भारत पर आज बिदेशी भाषा हावी है और भारत की स्थिति ऐसी है की यहाँ के लगभग 45% जन संख्या उस बिदेशी भाषा english से अपरिचित है जिस कारण हर बिषय उस 45% ज

अरब में प्राचीन वैदिक संस्कृति

अरब में प्राचीन वैदिक संस्कृति थी अल्लाह और इस्लाम का अफवाह मुहम्मद ने 1400 साल पहले ही फैलाया था. प्रमाण आप भी देखिये--अपने मुसलमान दोस्तों को भी दिखाए, अरब के निवासी अपने पिछले 4000 साल के इतिहास को भूल चुके थे, और इस्लाम में इस काल को जिहालिया कहा गया है जिसका अर्थ है अन्धकार का युग, जिहालिया का युग मुहम्मद के अनुयाइयो द्वारा फैलाया झूठ है, मुहम्मद के कहने पर वहां के सभी पुस्तकालय, देवालय, विद्यालय जला दिए तो इन्हें कैसे पता चला की वहां पर इस्लाम से पहले जाहिलिया का युग था, असल में मुहम्मद जो की भविष्यपुराण के अनुसार राक्षस था, ने राजा भोज के स्वपन में आकर कहा था की आपका सनातन धर्म सर्वोत्तम है पर मैं उसे पुरे संसार से समेट कर उसे पैशाचिक दारुण धर्म में परिवर्तित कर दूंगा, और वहां के लोग लिंग्विछेदी, दढ़ियल बिना मुछ के, ऊँची आवाज में चिल्लाने वाले(अजान), व्यभाचारी, कामुक और लुटेरे होंगे, इसलिए ये जहाँ भी जाते है अराजकता फैला देते है, खुद मुस्लिम देश भी दुखी है, इनके जिहालिया के युग का भांडा शायर ओ ओकुल में फूटता है, जिसमे लबी-बिन-ए-अरव्तब-बिन-ए-तुरफा जी ने अरब में वैदिक संस्कृति क

science

science